Monday, January 17, 2022

शिक्षा और दर्शन में संबंध - Relationship between Education and Philosophy

 शिक्षा और दर्शन ( Education and Philosophy )

अथवा

दर्शन और शिक्षा एक ही  सिक्के के दो पहलू हैं- जे. एस. रॉस

दर्शन की अर्थ  दर्शन शब्द के अंग्रेजी रूपान्तरण ‘Philosophy’ शब्द दो यूनानी शब्दों ‘Philos’ और ‘Sophia’ से मिलकर बना है। ‘Philos’ का अर्थ है ‘Love -प्रेम या अनुराग और ‘Sophia’ का अर्थ है- ‘ Knowledge or Wisdom - ज्ञान’ इस प्रकार ‘Philosophy’ (दर्शन) का शाब्दिक अर्थ हुआ- ‘Love of wisdom’ (ज्ञान से प्रेम या ज्ञान के प्रति अनुराग)  

दर्शन की परिभाषायें 

ब्राइटमैन  "दर्शन शास्त्र को एक ऐसे प्रयास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा मानव अनुभूतियों के सम्बन्ध में समग्र रूप में सत्यता से विचार किया जाता है अथवा जो सम्पूर्ण अनुभूतियों को बोधगम्य बनाता है।"

आर. डब्ल्यू. सेलर्स- “दर्शन एक व्यवस्थित विचार द्वारा विश्व और मनुष्य की प्रकृति के विषय में ज्ञान प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास है। ” 

बर्टेण्ड रसेल “ अन्य क्रियाओं के समान दर्शन का मुख्य उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति है।

प्लेटो के अनुसार – “पदार्थों के सनातन स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन हैं।

फिस्टे के अनुसार – “दर्शन ज्ञान का विज्ञान हैं।

पोलसेक के अनुसार – “वैज्ञानिक ज्ञान का कुल योग हैं।

डॉ० राधाकृष्णन के अनुसार – “दर्शन सत्य के स्वरूप की तार्किक विवेचना हैं।

शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)

प्राचीन समय में शिक्षा को विद्या कहा जाता था। विद्या शब्द की उत्पत्ति विद’ धातु में   “’ प्रत्यय लगाने से हुई है।जिसका अर्थ है जानना प्राचीन समय में ज्ञान को मानव जीवन के विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है।

शिक्षा शब्द संस्कृत के शिक्ष धातु में प्रत्यय लगाने से हुई है जिसका तात्पर्य सीखना और सिखाना।

शिक्षा को आंग्ल भाषा में एजुकेशन   (Education ) कहते हैं। शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार एजुकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा की निम्नलिखित शब्द से हुई है।

a) ‘Educare’ which means ‘to bring out’ or ‘to nourish’.

शिक्षित करना ,बाहर निकालना,आगेबढ़ाना

b) ‘Educere’ which means ‘to lead out’ or ‘to draw out’.

विकसितकरनायाबाहरनिकालना

c) ‘Educatum’ which means ‘act of teaching’ or ‘training’?

शिक्षितकरनाबाहरनिकालना

d) ‘Educatus’ which means ‘to bring up, rear, educate’.

शिक्षितकरना,पालनपोषणकरना

e) ‘Ēducātiō’ which means “a breeding, a bringing up, a rearing.”

पालन पोषण करना ,बढ़ानाआगे बढ़ाने के लिए मदद करना

नोट:- Education  को लैटिन भाषा में EDUCATUM से ही लिया गया है जिसमें दो शब्द  (E + Duco).

शिक्षा का संकुचित अर्थ

शिक्षा के संकुचित अर्थ से अभिप्राय उस शिक्षा से है जो एक निश्चित स्थान अथवा विद्यालय कॉलेज में निश्चित समय तक एवं निश्चित योजना के तहत दी जाती है

शिक्षा का व्यापक अर्थ

शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार शिक्षा जीवन चलने वाली प्रक्रिया है।यह प्रक्रिया उसी समय प्रारंभ हो जाती है जब बालक का जन्म होता है। अर्थात व्यापक दृष्टि से शिक्षा का अर्थ बालक के उन सभी अनुभवों से है जिसका प्रभाव उसके ऊपर जन्म से लेकर मृत्यु तक पड़ता है अर्थात या अनियंत्रित वातावरण है।

वैदिक कालीन शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया थी , जिसके लिए व्यापक दृष्टिकोण से अवधि की सीमा निश्चित  नहीं थी। वैदिक काल में शिक्षा आयु के साथ-साथ समानांतर चलती थी। वैदिक कालीन शिक्षा में कक्षा , वर्ग का महत्व नहीं था।  वैदिक कालीन शिक्षा जीवन , राजनीतिक , सामाजिक , संगीत आदि पर आधारित थी। आधुनिक शिक्षा कक्षा वर्ग अथवा आयु के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। जिसके कारण शिक्षा के स्तर में कमी आई है।

  • वैदिक कालीन शिक्षा जीवन पर्यंत चलती रहती थी।
  • मनुष्य जीवन पर्यंत विद्यार्थी का जीवन जीता था।

 डॉ एस अलतेकर के अनुसार :- वैदिक युग से लेकर आज तक भारत में शिक्षा का मूल तात्पर्य यह रहा है कि शिक्षा प्रकाश का वह स्रोत है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ प्रदर्शक करती है। 

शिक्षा की परिभाषा

महान मनोवैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियो दार्शनिको के द्वारा शिक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार और परिभाषाये बतलाई है. जो शिक्षा के अर्थ को समझने में हमारी सहायता करेगी. तो आइये कुछ शिक्षा सम्बन्धी प्रमुख विचारको की परिभाषाए बतलाई जा रही हैं :- 

  • महात्मा गांधी के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :- 

शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक, मनुष्य और मानव के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है.

  • जॉन ड्यूवी के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा व्यक्ति की उन सभी भीतरी शक्तियों का विकास है, जिससे वह अपने वातावरण पर नियंत्रण रखकर अपने उत्तरदायित्त्वों का निर्वाह कर सके.

  • स्वामी विवेकानन्द के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है.” 

  • Sarvepalli Radhakrishnan के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा व्यक्ति को और सामाजिक के सर्वतोन्मुखी विकास की सशक्त प्रक्रिया है.

  • ब्राउन की शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा चैतन्य रूप में एक नियंत्रित प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति केव्यवहार में परिवर्तन किये जाते हैं और व्यक्ति के द्वारा समूह में.

  • डॉक्टर थॉमस के अनुसार शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा भारत में विदेशी नहीं है , ऐसा कोई भी देश नहीं है जहां ज्ञान के प्रति प्रेम इतने प्राचीन समय में प्रारंभ हुआ हो या जिसने इतना स्थाई और सशक्त प्रभाव को उत्पन्न किया हो। वैदिक युग के साधारण कवियों से लेकर आधुनिक युग के बंगाली दार्शनिक तक शिक्षकों एवं विद्वानों की एक अविरल परंपरा रही है.

  • सुकरात के अनुसार शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा का अर्थ है प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में अदृश्य रूप में विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारों को प्रकाण में लाना.

  • हर्बट स्पैन्सर के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा का अर्थ अन्तःशक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है.

  • जिद्दू कृष्णमूर्ति के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा व्यक्ति के समन्वित विकास की प्रक्रिया है.

  • Thomas Edison के अनुसार शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है तब वह उसके प्रत्येक गुण को पूर्णता को लाकर व्यक्त करती है.

  • पेस्तालॉजी के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकृतिक, प्रगतिशील और सामंजस्यपूर्ण विकास है.

  • राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, 1964-66 के द्वारा शिक्षा की परिभाषा :-

शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक विकास का शक्तिशाली साधन है, शिक्षा राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी है.

  • फ्राबेल की परिभाषा :-

शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियॉबाहर प्रकट होती है.

  • हार्न की परिभाषा :-

शिक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से विज्ञान विकसित सचते मानवका अपने मानसिक संवेगात्मक और संकल्पित वातावरण से उत्तम सामंजस्यस्थापित करना है.

शिक्षा की प्रकृति ( Nature of Education )

जैसा शिक्षा का अर्थ होता है, वैसा ही उसका स्वरूप भी होता है। यह बहुत जटिल है। आइए अब हम शिक्षा की प्रकृति पर चर्चा करें (As is the meaning of education, so is its nature. It is very complex. Let us now discuss the nature of education )

1. शिक्षा जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है (Education is a life-long process)

2. शिक्षा एक व्यवस्थित प्रक्रिया है (Education is a systematic process )

3. शिक्षा व्यक्ति और समाज का विकास है ( Education is development of individual and the society)

4. शिक्षा व्यवहार का संशोधन है- शैक्षिक प्रक्रिया के माध्यम से मानव व्यवहार को संशोधित और सुधारा जाता है। (Education is modification of behaviour- Human behaviour is modified and improved through educational process.)

5. शिक्षा उद्देश्यपूर्ण है( Education is purposive )

6. शिक्षा एक प्रशिक्षण है ( Education is a training)

7. शिक्षा ही निर्देश और दिशा है( Education is instruction and direction)

8. शिक्षा ही जीवन है( Education is life )

9. शिक्षा हमारे अनुभवों का निरंतर पुनर्निर्माण है(Education is continuous reconstruction of our experiences )

10. शिक्षा व्यक्तिगत समायोजन में मदद करती है( Education helps in individual adjustment )

11. शिक्षा संतुलित विकास है ( Education is balanced development )

12. शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है( Education is a dynamic process )

13. शिक्षा एक द्विध्रुवीय प्रक्रिया है: एडम्स के अनुसार, शिक्षा एक द्विध्रुवीय प्रक्रिया है ( Education is a bipolar process: According to Adams, education is a bipolar process)

14. शिक्षा एक त्रि-आयामी प्रक्रिया है: जॉन डेवी ने ठीक ही टिप्पणी की है, इस तरह शिक्षा की प्रक्रिया में 3 ध्रुव होते हैं - शिक्षक, बच्चा और समाज। ( Education is a three dimensional process: John Dewey has rightly remarked, In this way the process of education consists of 3 poles – the teacher, the child and the society )

15. विकास के रूप में शिक्षा: शिक्षा का उद्देश्य उसके विकास की प्रक्रिया को सुगम बनाना है। ( Education as growth: The purpose of education is to facilitate the process of his/her growth

शिक्षा और दर्शन में संबंध -Relationship between Education and Philosophy

जो भी विचार विद्वानों ने दिए हैं उनसे हमें दर्शन और शिक्षा का सम्बन्ध मालूम होता है। इन विचारों से यह भी ज्ञात होता है कि इन दोनों में घनिष्ठ और अविच्छिन्न सम्बन्ध होता है और दर्शन एक प्रकार से शिक्षा के लिए आधार है तो उसका प्रभाव शिक्षा पर इतना अधिक पड़ा है कि बिना दर्शन के शिक्षा की क्रिया पूर्णरूपेण हो नहीं सकती है। अतएव हमें पहले विभिन्न विचारों की ओर देखना चाहिए-

(i) दर्शन शिक्षा का सामान्य सिद्धान्तवाद है- जॉन डीवी ने कहा है कि अपने सामान्यतम रूप में दर्शन शिक्षा का सिद्धान्तवाद है।चूँकि दर्शन में सोच-विचार के बाद निष्कर्ष निकालते हैं इसलिए वह एक प्रकार से सिद्धान्तवाद बनता है। शिक्षा में इसे प्रयोग किया जाता है। अतएव दर्शन और शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।

(ii) दर्शन सिद्धान्तवादी और चिन्तनशील तथा शिक्षा व्यवहारशील- प्रो० बटलर ने लिखा है कि दर्शन सिद्धान्तवादी और चिन्तनशील है और शिक्षा व्यावहारिक है।इसका तात्पर्य यह है कि दर्शन में चिन्तन ही होता है और शिक्षा में क्रिया होती है। दर्शन क्याका उत्तर देता है और शिक्षा कैसेका उत्तर देती है।

(iii) दर्शन और शिक्षा एक सिक्के के दो पहलू- प्रो० रॉस ने लिखा है कि, “दर्शन और शिक्षा सिक्के के दो पहलू के समान हैं, एक चीज के दो विभिन्न दृश्य उपस्थित करते हैं, तथा एक-दूसरे से अभिप्रेत होता है।इस कथन से हमें दर्शन और शिक्षा में अभिन्नता मालूम होती है, फिर इनके द्वारा एक ही वस्तु दो ढंग से प्रकट की जाती है।

(iv) दर्शन का सक्रिय पक्ष शिक्षा- प्रो0 एडम्स ने बताया है कि, “शिक्षा दर्शन का गत्यात्मक पक्ष है। यह दार्शनिक विश्वास का सक्रिय पक्ष है।इस कथन में यह संकेत मिलता है कि मनुष्य जो कुछ विचार करता है उसे वह कार्य में लगाता है और यदि ऐसा हो तो उन विश्वासों का कोई मूल्य नहीं। इस दृष्टि से दर्शन का मूल्य शिक्षा के क्षेत्र में प्रकट किया जाता है।

(v) दर्शन द्वारा शिक्षा की कला को पूर्णता देना- प्रो० फिक्टे ने जोर दिया कि दर्शन के बिना शिक्षा की कला स्वतः पूर्ण स्पष्टता को कंदापि प्राप्त नहीं कर सकेगी।

इस कथन से यह मालूम होता है कि दर्शन शिक्षा की बातों की स्पष्ट व्याख्या करता है और उन्हें पूर्णरूपेण तभी समझा जा सकता है जब दर्शन की सहायता ली जाती है।

(vi) दर्शन शिक्षा का आधार- आधुनिक विचारकों ने बताया है कि शिक्षा की प्रक्रिया मजबूत बनाने के लिए दर्शन का आधार होना चाहिए। इस कथन से स्पष्ट होता है कि दर्शन को और शिक्षा दोनों एक-दूसरे के साथ गहरा सम्बन्ध रखते हैं।

(vii) दर्शन शिक्षा की समस्या का हल- प्रो0 हरबर्ट ने लिखा है कि शिक्षा को उस समय तक फुरसत नहीं जब तक कि दार्शनिक प्रश्न हल नहीं होते हैं।इससे दर्शन की उपादेयता के साथ-साथ शिक्षा के साथ उसका अटूट सम्बन्ध भी मालूम होता है। दर्शन की दृष्टि प्रश्नों समस्याओं को हल करने की ओर होती है। ऐसी समस्याएँ क्रिया करते समय उठती हैं। अतएव स्पष्ट है कि दर्शन शिक्षा की सहायता करता है, मार्ग स्पष्ट करता है।

(viii) दर्शन की समस्या शिक्षा की समस्या  शिक्षाविदों ने कहा है कि शिक्षा की सभी समस्याएँ अन्ततोगत्वा दर्शन की समस्याएँ हैं।इस कथन से हमें ज्ञात होता है कि शिक्षा एक सविचार, चिन्तनशील प्रक्रिया है, अतएव इसके बारे में दार्शनिक तौर से सोचना-समझना जरूरी है। यदि ऐसा नहीं होता तो समस्याओं का समाधान नहीं होता है। अब स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा और दर्शन में कैसा सम्बन्ध पाया जाता है।

(ix) दर्शन और शिक्षा के तथ्य समान- दर्शन मनुष्य और संसार की सभी चीजों के प्रति एक निश्चित दृष्टिकोण में पाया जाता है। शिक्षा भी मनुष्य के जीवन से सम्बन्धित होती है, वह भी संसार की सभी चीजों के बारे में ज्ञान-अनुभव देती है। दर्शन मनुष्य की आत्मा, मूल्य, आदर्श मानक स्थापित करता है, इनके बारे में खोज करता है और शिक्षा भी इस खोज की क्रिया रूप में रहती है। अतएव दोनों के तथ्य एक ही हैं तथा दोनों में गहरा सम्बन्ध है।

(x) दर्शन और शिक्षा दोनों मानव जीवन के अभिन्न अंग- दर्शन जीवन में सत्यं शिवं सुन्दरं की खोज करता है और शिक्षा जीवन के सर्वोत्तम की अभिव्यक्ति है, जीवन की पूर्णता का प्रकाशन है। सत्यं शिवं सुन्दरं में ही जीवन की पूर्णता पाई जाती है। अस्तु दर्शन और शिक्षा जीवन के अभिन्न अंग होने के नाते परस्पर सम्बन्धित माने जाते हैं।

ऊपर के विचारों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दर्शन और शिक्षा में बहुत समीपी सम्बन्ध पाया जाता है। शिक्षा की सफलता दर्शन पर निर्भर करती है, दर्शन के अभाव में शिक्षा की योजना अन्धकार में रहती है, शिक्षा की खोज दर्शन के द्वारा होती है, शिक्षा की प्रयोगशीलता एक सच्चे दर्शन के कारण ही सम्भव होती है। दर्शन यदि सत्य सिद्धान्त प्रस्तुत करे तो शिक्षा किसे काम में लाये ? ऐतिहासिक साक्ष्य इसके पक्ष में है। भारत में वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, बुद्ध, गांधी सभी ने शिक्षा दी जिसमें अपने दर्शन के मूल सिद्धान्त बताए अतएव दर्शन और शिक्षा अविच्छेद्य है।

दर्शन का शिक्षा पर प्रभाव (Effect of Philosophy on Education)

शिक्षा क्रिया के विभिन्न अंगों जैसे उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधि, पाठ्यपुस्तक, शिक्षक, शिक्षार्थी, अनुशासन आदि पर दर्शन का प्रभाव दिखाई देता है। अतः इन्हें अलग-अलग समझा देने से दर्शन और शिक्षा की स्थिति स्पष्ट हो जायेगी-

(i) दर्शन का शिक्षा के उद्देश्य पर प्रभाव- मनुष्य जीवन के लक्ष्य के अनुसार अपनी शिक्षा के उद्देश्य भी रखता है। जीवन के लक्ष्य का निर्धारण जीवन-दर्शन से होता है। अतएव शिक्षा का उद्देश्य भी दर्शन के द्वारा निश्चित होता है। उदाहरण के लिए, आज भारत में शिक्षा का उद्देश्य प्रमुखतः जीवन को सुखी बनाना है। इसके पीछे भौतिकवादी दर्शन मिलता है। अतएव हमारी शिक्षा का उद्देश्य भौतिकवादी दर्शन ने निश्चित किया है यह हम कह सकते हैं। इसी प्रकार अन्य देशों में होता है; जैसे- अमेरिका में प्रयोजनवादी दर्शन, रूस में साम्यवादी दर्शन, इंग्लैंड में उपयोगितावादी दर्शन ने शिक्षा के उद्देश्य निश्चित किये हैं।

(ii) दर्शन का शिक्षा के पाठ्यक्रम पर प्रभाव- पाठ्यक्रम शिक्षा के उद्देश्य के अनुसार निश्चित किया जाता है। यदि शिक्षा का उद्देश्य दर्शन निश्चित करना है तो उसका पाठ्यक्रम भी दर्शन के द्वारा निश्चित होता है। इसका उदाहरण हम विभिन्न देशों के पाठ्यक्रम में पाते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया। आज विज्ञान के प्रभाव से वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो गया है अतएव पाठ्यक्रम में विज्ञान, तकनीकी, व्यावसायिक विषय रखें गये हैं। आवश्यकता एवं क्रियाशीलता के आधार पर आज पाठ्यक्रम में खेल-कूद, क्रियात्मक शिक्षा क्राफ्ट जैसे विषय रखे गये हैं। ये सब दर्शन का ही प्रभाव कहा जा सकता है।

(iii) दर्शन का शिक्षा की विधि पर प्रभाव- शिक्षा की विधि पर भी दर्शन का प्रभाव पड़ा है। प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य की प्रणाली थी, कुछ समय बाद मौखिक विधि के साथ क्रियाविधि भी काम में लायी गई। आज कुछ नई शिक्षाविधियाँ काम में लाई जा रही हैं जैसे प्रोजेक्ट विधि, डाल्टन विधि, किण्डरगार्टेन विधि आदि। इन विधियों का प्रयोग दार्शनिक विचारों में परिवर्तन के कारण हुआ है।

(iv) दर्शन का पाठ्यपुस्तकों पर प्रभाव- नवीनतम विधि आदि दर्शन का प्रभाव पाठ्यपुस्तकों पर भी पड़ता है। प्राचीन काल में प्रकाशन का अभाव होने से पाठ्यपुस्तकें नहीं थीं। आज इनके बिना शिक्षा का कार्य होना सम्भव नहीं है। पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से दर्शन का प्रचार होता है। जनतन्त्रवादी दर्शन ने शिक्षा सभी को प्राप्त कराने का दावा किया है अतएव पाठ्यपुस्तकें एक अनिवार्य साधन बन गईं। यहाँ भी दर्शन का प्रभाव शिक्षा पाठ्यपुस्तकों पर पड़ता है।

(v) दर्शन का शिक्षक पर प्रभाव- शिक्षक का अपना एक दर्शन होता है। शिक्षक वही होता है जो ज्ञान की इच्छा रखता है। दर्शन ज्ञान के लिए प्रेम होता है। अतएव शिक्षक दर्शन से प्रभावित व्यक्ति होता है। दर्शन के द्वारा ज्ञान की परिपक्वता आती है व्यक्तित्व के मूल्य विकसित होते हैं, शिक्षण के प्रति उचित दृष्टिकोण बनता है, भविष्य निर्माण के लिए सही प्रयत्न होता है और शिक्षार्थी के जीवन का उन्नयन करने में सहायता मिलती है। प्राचीन भारत में गुरु शान्त, सरल, निरीह, कर्त्तव्यपरायण होता था, आज वह अशान्त है, तड़क-भड़क पसन्द करने वाला है, धन की इच्छा करने वाला है। यह भौतिकवाद का प्रभाव है। अतएव शिक्षक पर भी दर्शन का प्रभाव दिखाई देता है।

(vi) दर्शन का शिक्षार्थी पर प्रभाव- दर्शन का प्रभाव शिक्षार्थी पर पड़ता है। आज राजनीति को शिक्षार्थी ने अपना व्यवसाय बना लिया है। उसमें असन्तोष है और विरोधी तत्त्व का वह प्रकाशन करता है। प्राचीन भारत का शिक्षार्थी एवं शिक्षक दोनों राजनीति से दूर रहते थे, शान्त जीवन में उन्हें सुख मिलता था और राजनीति के व्यवसाय का उन्हें कोई ज्ञान था दर्शन ने ही इस प्रकार का परिवर्तन ला दिया है। यह आज सभी स्वीकार करते हैं।

(vii) दर्शन का अनुशासन पर प्रभाव- अनुशासन शिक्षक एवं शिक्षार्थी के परस्पर व्यवहार में पाया जाता है। शिक्षक और शिक्षार्थी प्राचीन काल में अनुदेशक और अनुपालक होते थे। आज शिक्षार्थी एवं शिक्षक दोनों में स्वतन्त्रता का दुरुपयोग होता है अतएव दोनों में संघर्ष हो रहा है। शिक्षार्थी शिक्षक के आदेश को स्वीकार नहीं करता है बल्कि अपने आप जो चाहता है करता है। स्वेच्छाचारिता आधुनिक जनतंत्रवादी दर्शन का प्रभाव है। नैतिकता भी अनुशासन का एक अंग है, आज भौतिकवाद तथा धर्मनिरपेक्षवाद ने शिक्षार्थी को अनैतिक और धर्मविहीन बना दिया है। विद्यालय इनकी क्रियाओं के दुष्प्रभाव से अनुपयुक्त वातावरण से पूर्ण है। अब. हमें दर्शन का साफ प्रभाव अनुशासन पर दिखायी दे रहा है। प्रो० रस्क ने दर्शन का प्रभाव बताते हुए लिखा है कि शिक्षा की समस्या के प्रत्येक कोण से इस प्रकार विषय के एक दार्शनिक आधार की माँग आती है।इसके आगे प्रो० बटलर ने कहा है कि दर्शन शैक्षिक अभ्यास के लिए एक निर्देशक है।

शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव (Effect of Education on Philosophy)

शिक्षाविदों ने दर्शन के प्रभाव को स्वीकार तो किया है लेकिन यह भी कहा है कि शिक्षा का प्रभाव दर्शन पर भी काफी पड़ता है। प्रो० रॉस ने लिखा है कि, “शैक्षिक उद्देश्य और विधियाँ दार्शनिक सिद्धान्तों के सह-सम्बन्धी हैं।दर्शन एक नियामक विज्ञान है अतएव वह शिक्षा के लिए आदर्श एवं मानक प्रस्तुत करता है, परन्तु मनुष्य का विचार उसकी शिक्षा से भी प्रभावित होता है। अतएव दर्शन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है।

(i) दर्शन की आधारशिला शिक्षा- शिक्षा ऐसी वस्तु है और उसका ऐसा क्षेत्र है जहाँ दर्शन को काम में लाने का प्रयत्न करते हैं। दर्शन का निर्माण और विकास शिक्षा के विभिन्न अंगों के निरीक्षण, चिन्तन एवं विचारीकरण के फलस्वरूप होता है। शिक्षा के द्वारा भाषा सीखी जाती है। भाषा के द्वारा चिन्तन होता है और परिणामस्वरूप दर्शन की प्राप्ति होती है। बिना शिक्षा के दर्शन की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए शिक्षा दर्शन की आधारशिला है। उसके निर्माण का साधन है।

(ii) दर्शन को जीवित रखना  शिक्षा ज्ञान- अनुभव है जो हम संसार के बारे में प्राप्त करते हैं। दर्शन ज्ञान की अन्तिम व्याख्या करता है, सिद्धान्त निर्धारित करता है परन्तु ये व्याख्या एवं सहायक सिद्धान्त बिना शिक्षा के सम्भव नहीं हो सकते। फलतः शिक्षा दर्शन को जीवित रखने में सक्षम एवं सहायक होती है।

(iii) दर्शन को मूर्त रूप देना- दर्शन संसार के सम्बन्ध में जो चीजें निश्चित करता है उसको मूर्त रूप शिक्षा ही देती है जैसा कि प्रो० एडम्स ने कहा है कि शिक्षा दार्शनिक विश्वास का सक्रिय पक्ष है। शिक्षा जीवन के आदर्शों को व्यावहारिक विधि से प्राप्त कराती है। अतएव स्पष्ट है कि शिक्षा दर्शन को साकार बनाती है।

(iv) दर्शन को समाधान हेतु समस्या देना- शिक्षा का कार्य देश के दर्शन का पुनर्निर्माण तथा मूल्यों की पुनर्परिभाषा करना है जिससे कि वे हमारे बदलते जीवन और विचार की व्याख्या कर सकें। शिक्षा के द्वारा परिवर्तन होता है अतएव समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और इनका समाधान दर्शन करता है। अतएव दर्शन को शिक्षा के द्वारा चिन्तन की सामग्री मिलती है।

(v) दर्शन को गतिशील बनाना- चूँकि शिक्षा के द्वारा चिन्तन की सामग्री मिलती है और दर्शन उस पर चिन्तन-मनन करता है, उनका समाधान ढूँढ़ता है अतएव शिक्षा दर्शन को गतिशील बनाती है (Education makes philosophy dynamic) शिक्षा के द्वारा दर्शन प्रगति करता है (Philosophy is made progressive by education) शिक्षा का ही यह परिणाम था कि विश्व में विभिन्न दर्शन बने और उनका विकास हुआ।

निष्कर्ष :-

दार्शनिक शिक्षा दर्शन और शिक्षा का सम्मिलित रूप हैं। जो शिक्षा की संरचना को दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान करता हैं।यह शिक्षा के उद्देश्यों एवं कार्यों का चयन करता हैं एवं शिक्षा से संबंधित समस्याओं को अपने सिद्धांतों बीके अनुरूप हल करने का प्रयास करता हैं।

शिक्षा और दर्शन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दर्शन शिक्षा का आधार है अर्थात शिक्षा अपने लक्ष्यों की प्राप्ति दर्शन के मार्ग पर चलकर ही करती हैं। शिक्षा दर्शन को गतिशीलता प्रदान करता हैं और उसे क्रियावान बनाए रखने में अपना सहयोग प्रदान करता हैं। 

शिक्षा दर्शन के मूल सिद्धांतों को मूर्त रूप प्रदान करने का कार्य करता हैं। शिक्षा दर्शन को प्राणवान बनाए रखती हैं एवं दर्शन शिक्षा जी समस्त समस्याओं को दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान करता हैं। 

दार्शनिक शिक्षा शिक्षा के उद्देश्यों,लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं को प्राप्त करने एवं निर्धारित करने का कार्य करती हैं। शिक्षा दर्शन का गत्यात्मक पक्ष हैं अर्थात शिक्षा के अभाव में दर्शन प्राण विहीन हैं। यह दर्शन के दृष्टिकोण एवं सिद्धांतो को क्रिया रूप प्रदान करता हैं। यदि दर्शन सिद्धांत हैं तो शिक्षा उसका व्यवहारिक रूप। 

यही शिक्षा जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित करती हैं तो कौन सा लक्ष्य छात्रों के लिए उचित है एवं अनुचित। इसका निर्धारण दर्शन करता हैं। दर्शन सत्य के मार्ग की खोज करता हैं और शिक्षा उस पर चलती हैं। 

बटलर के शब्दों मे – “दर्शन यदि सिद्धांत हैं तो शिक्षा उसका व्यवहारिक रूप हैं।


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