Wednesday, January 19, 2022

दर्शन की अवधारणाएं

  दर्शन ( Philosophy)

दर्शन = शिक्षा का सैद्धांतिक पक्ष

शिक्षा = व्यावहारिक पक्ष

मनोविज्ञान = शिक्षा का व्यावहारिक

समाजशास्त्र = शिक्षा का सामाजिक पक्ष

दर्शन का शाब्दिक अर्थ 

दर्शन अंग्रेजी भाषा के ‘फिलोस्फी’ शब्द का रूपांतर है, तथा फिलॉस्फी शब्द ग्रीकशब्द फिलॉस्फीया ( Philosophia ) शब्द से बना है इस शब्द की उत्पति ग्रीक के दो शब्दों ‘फिलोस’ तथा ‘सोफिया’ से हुई है। ‘फिलोस’ का अर्थ है प्रेम अथवा अनुराग और ‘सोफिया’ का अर्थ है –ज्ञान। 

इस प्रकार ‘फिलोस्फी’ अर्थात दर्शन का शाब्दिक अर्थ का ज्ञान अनुराग अथवा ज्ञान का प्रेम है। इस दृष्टि से ज्ञान तथा सत्य की खोज करना तथा उसके वास्तविकता स्वरूप को समझने की कला को दर्शन कहते हैं तथा किसी कार्य करने से पूर्व इस कला को प्रयोग करने वाले व्यक्ति को दार्शनिक की संज्ञा दी जाती है।

Philosophy ~ Philosophia = Phlios + Sophia

 ‘‘दर्शन = प्रेम + ज्ञान / अनुराग = ज्ञान के प्रति प्रेम /अनुराग’’ 

प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में लिखा है – “ जो व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करने तथा नई-नई बातों को जानने के लिए रूचि प्रकट करता है तथा जो कभी संतुष्ट नहीं होता, उसे दार्शनिक कहा जाता है।”

दर्शन का पाश्चात्य सम्प्रत्यय

पश्चात्य जगत में दर्शन का सर्व प्रथम विकास यूनान में हुआ। प्रारम्भ में दर्शन शास्त्र मे विकास हुआ दर्शन अनुशासन के रूप में सीमित हो गया।

  • प्लेटो के अनुसार- जो सीखने के लिये आतुर रहता है कभी भी सन्तोष कर के रूकता नहीं,वास्तव में वह दार्शनिक है।
  • अरस्तु के अनुसार-‘‘दर्शन एक ऐसा विज्ञान है जो परम तत्व के यथार्थ स्वरूप की जॉच करता है।’’
  • कान्ट के अनुसार-’ ’दर्शन बोध क्रिया का विज्ञान और उसकी आलोचना है।’’ परन्तु आधुनिक युग में पश्चिमी दर्शन में भारी बदलाव आया है, अब वह मूल तत्व की खोज ओर प्रवृत्त है। अब दर्शन को विज्ञानों का विज्ञान और आलोचना का विज्ञान माना जाता है।
  • कामटे के शब्दों में-‘‘दर्शन विज्ञानों का विज्ञान है।’’
  • हरबार्ट स्पेन्सर के शब्दो में ‘‘दर्शन विज्ञानों का समन्वय या विश्व व्यापक विज्ञान है।’’

नोट:- दर्शन शब्द का प्रयोग सबसे पहले लिखित रूप में पाइथागोरस ने किया था।

प्राचीन पाश्चात्य दर्शन

  • सुकरात
  • प्लेटो
  • अरस्तू
  • आधुनिक पाश्चात्य दर्शन
  • रेने देकार्त
  • स्पिनो
  • गाटफ्रीड लैबनिट्ज़
  • कांट
  • डेविड ह्यूम

समकालीन पाश्चात्य दर्श

  • ज्यां-पाल सार्त्र
  • ए जे एयर
  • विट्गेंस्टाइन

दर्शन का भारतीय सम्प्रत्य

भारतीय व्याख्या अधिक गहराई तक पैठ बनाती है,क्योंकि भारतीय अवधारणा के अनुसार दर्शन का क्षेत्र केवल ज्ञान तक सीमित न रह कर समग्र व्यक्तित्व को अपने आप  में समाहित करता है। दर्शन चिन्तन का विषय न हो कर अनुभूति का विषय माना जाता है।

दर्शन शब्द संस्कृत की दृश्धातु से बना है-‘‘दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन’’अर्थात जिसके द्वारा यथार्थ तत्व की अनुभूति हो वही दर्शन है।

दर्शन को तत्वा भी कहते है जहां तत्वा शब्द ( तात + त्वा) से बना है। जिसमें 

तात ( Tat) = यह / वह 

त्वा (Tva) = तुम 

अर्थात दर्शन या तत्वा का अर्थ यह है कि **तुम यह हो / तुम वह हो** इसका अभिप्राय पदार्थ की ओर है जिसका संबंध तत्वामीमंशा से है।

दर्शन के विभिन्न अर्थ बताये गये हैं। उपनिषद् काल में दर्शन की परिभाषा थी-जिसे देखा जाये अर्थात् सत्य के दर्शन किये जाये वही दर्शन है। (दृश्यते अनेन इति दर्शनम्- उपनिषद) 

  • डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार- दर्शन वास्तविकता के स्वरूप का तार्किक विवेचन है।

दर्शन का वास्तविक ( भारतीय + पाश्चात्य ) सम्प्रत्यय

ऊपर की गयी चर्चा से यह स्पष्ट है कि भारतीय दृष्टिकोण और पाश्चात्य दृष्टिकोण में मूलभूत अन्तर है। परन्तु दर्शन की  मूलभूत सर्वसम्मत परिभाषा होनी चाहिये- दर्शन ज्ञान की वह शाखा है, "जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्म्र्राण्ड एवं मानव के वास्तविक स्वरूप सृष्टि-सृष्टा, आत्मा-परमात्मा, जीव-जगत, ज्ञान-अज्ञान, ज्ञान प्राप्त करने के साधन और मनुष्य के करणीय और अकरणीय कर्मोर्ंं का तार्किक विवेचेचन किया जाता है"।। 

इस परिभाषा में प्राकृतिक, सामाजिक, अनात्मवादी व आत्मवादी और सभी दर्शन आ जाते है, और दर्शन के अर्थ प्रतिबिम्बित होते हैं-

  • दर्शन का मूल ज्ञान के लिये प्रेम- 
  • दर्शन का अर्थ सत्य की खोज- 
  • विचारीकरण की कला- 
  • अनुभव की बोध गम्यता- 
  • अंतिम उत्तर के रूप में -
  • समस्याओं पर विचार करने का ढग- 

दर्शन की परिभाषा

हम यह कह सकते हैं कि दर्शन का संम्बध ज्ञान से है और दर्शन ज्ञान को व्यक्त करता है। हम दर्शन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने हेतु कुछ परिभाषायें दे रहे हैं।

  • बरटे्रड रसेल- ‘‘अन्य विधाओं के समान दर्शन का मुख्य उद्देश्य-ज्ञान की प्राप्ति है।’’
  • आर0 डब्लू सेलर्स-’’दर्शन एक व्यवस्थित विचार द्वारा विश्व और मनुष्य की प्रकृति के विषय में ज्ञान प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न है।’’
  • जॉॅन डी0वी0 का कहना है- ‘‘जब कभी दर्शन पर गम्भीरतापवू के विचार किया गया है तो यही निश्चय हुआ कि दर्शन ज्ञान प्राप्ति का महत्व प्रकट करता है जो ज्ञान जीवन के आचरण को प्रभावित करता है।’’
  • हैन्डर्सन के अनुसार- ‘‘दर्शन कुछ अत्यन्त कठिन समस्याओ का कठारे नियंत्रित तथा सुरक्षित विश्लेषण है जिसका सामना मनुष्य करता है।
  • ब्राइटमैन ने दर्शन को थोडे़ विस्तृत रूप में परिभाषित किया है – कि दर्शन की परिभाषा एक ऐसे प्रयत्न के रूप में दी जाती है जिसके द्वारा सम्पूण्र मानव अनुभूतियों के विषय में सत्यता से विचार किया जाता है अथवा जिसके द्वारा हम अपने अनुभवों द्वारा अपनें अनुभवों का वास्तविक सार जानते हैं।

दर्शन की विशेषताएं

  1. इसमें सत्य की खोज की जाती है।
  2. यह सत्य के साथ प्रयोग या शोध है।
  3. यह सत्यके प्रति अंतर्दृष्टि की प्रणाली है।
  4. यह शिक्षा का सिद्धांत है।
  5. यह जीवनके प्रति एक दृष्टिकोण है।
  6. यह ज्ञान के प्रति प्रेम है ।
  7. यह प्रकृति और विश्व की सत्यता बताता है।
  8. जीवनकी जटिल समस्याओंको आसान बनाता है।
  9. यह अंतिम यथार्थ की अनुभूतिकराता है।
  10. इसमें सत्य की खोज निरंतर प्रयास किया जाता है।
  11. यह मूर्त और अमूर्त चिंतन को विकसित करता है।
  12. दर्शन मुख्यरूप से आध्यात्मिक होता है।

फिलॉस्फी की समस्याएं और मुद्दें ( Problems and Issues of Philosophy )

यह समस्याएं और मुद्दें  तत्वामीमंसा , ज्ञानमीमंसा, मूल्यामीमंसा तथा तर्कशास्त्र होते हैं।

1. तत्वामीमांसा (Metaphysics ) / तत्व विचार

दर्शनशास्त्र की कई शाखाएँ हैं, जिनमें से एक तत्व मीमांसा भी है। तत्त्व मीमांसा दर्शनशास्त्र की वह शाखा है, जो ब्रह्मांड के परम तत्व / ईश्वर की खोज करते हुये उसके परम स्वरूप का विवेचन करती है। इसका प्रमुख विषय वो परम तत्व ही होता है जो इस संसार के होने का कारण है और इस संसार का आधार है।

तत्वामीमंसा = तत्व + मीमांसा ( ज्ञान)

Metaphysics = Meta ( matter ) + Physics ( प्रकृति तथा प्राकृतिक घटना का अध्ययन )

  • सत्य की खोज करता है ?  
  • सत्य क्या है ?
  • विश्व एक है या अनेक है?
  • द्रव्य , तथ्य क्या है?
  • समानता किसे कहते हैं। इत्यादि
**तत्वामीमांसा से ही प्रकृतिवाद या भौतिकवाद का परिभाषा मिलता है।**

शिक्षा में महत्व- शिक्षाकी प्रक्रिया , उद्देश्य , शिक्षण विधियां, शिक्षक छात्र की भूमिका विद्यालय अनुशासन इत्यादिका समस्या का अध्ययन करते हैं।

2. ज्ञानमीमांसा या ज्ञानशास्त्र (Epistemology ) या प्रमाण विचार:- 

ज्ञानमीमांसा शब्द का पहले प्रयोग 1854 ई. में जे. एफ. फेरियर महोदय ने किया था। Epistemology दो शब्द Epistemऔर logs से मिलकर बना है जिसका अर्थ है--- ज्ञानमीमांसा या ज्ञानशास्त्र

यदि दर्शन, जीवन तथा विश्व को समझना और उसकी व्याख्या करना चाहता है तो उसे उन दशाओं एवं समस्याओं को भी समझना होगा जो इस बोध को निर्धारित एवं सीमित करती है।साथ ही साथ उसे यह भी इंगित करना होगा कि इस बोध अथवा ज्ञान की सीमा क्या है।

संभव है यह ज्ञान अपनी सीमा का उल्लंघन न करता हो, फिर भी यह तो समझना ही होगा कि इस ज्ञान की प्रामाणिकता को किस प्रकार स्थापित किया जाता है।

अतः ज्ञान के स्वरूप, उसकी सीमा तथा प्रामाणिकता विषयक प्रश्नों को उठाना दर्शन शास्त्र के लिए नितांत आवश्यक है।ज्ञान के विषय में इन प्रश्नों को उठाना तथा उनका समाधान देना आदि विषयों का दर्शन की जिस शाखा मेंअध्ययन किया जाता है उसे ज्ञानमीमांसा कहते है।

  • ज्ञान क्या है?
  • ज्ञान की संभावना भी है या नहीं?
  • ज्ञान प्राप्त कैसे होता है?
  • मानव ज्ञान की सीमाएँ क्या हैं?
  • ज्ञाता और ज्ञेय में क्या संबंध है?
  • ज्ञान का स्वरूप क्या है?
  • अज्ञान क्या है? इत्यादि

** ज्ञानमीमांसा से ही आदर्शवाद का परिभाषा मिलता है।**

शिक्षा में महत्व - शिक्षाकी प्रक्रिया ,उद्देश्य ,शिक्षाका पाठयक्रम , शिक्षण विधियां इत्यादि समस्याओं का हल करता है।

3.मूल्यमीमंसा (Axiology) या आचारसंहिता

मूल्यमीमांसा दर्शन की एक शाखा है। मूल्यमीमांसा अंग्रेजी शब्द "Axiology- एग्जियोलॉजी" का हिंदी रूपांतर है। "एग्जियोलॉजी" शब्द - यह शब्द यूनानी शब्द "एक्सियस + लागस" से बना है। जिसमें एक्सिस का अर्थ मूल्य या कीमत है तथा "लागस" का अर्थ तर्क, सिद्धांत या मीमांसा है। 

अत: "एग्जियोलॉजी" या मूल्यमीमांसा का तात्पर्य उस विज्ञान से है। जिसके अंतर्गत मूल्य स्वरूप, प्रकार और उसकी तात्विक सत्ता का अध्ययन या विवेचन किया जाता है। किसी वस्तु के दो पक्ष हो सकते है-तथ्य और उसका मूल्य। तथ्य पर विचार करना उस वस्तु का वर्णन कहलाएगा और उसके मूल्य का निरूपण उसका गुणादषारण। 

  • जीवन मूल्योंके चयन का मानदंड होता है।
  • ज्ञान के चयन केलिए आधार प्रदान करताहै।

**नैतिकशास्त्र और सौंदर्यशास्त्र का अध्ययन हमेंमूल्य मीमांसा से ही मिलता है।**

शिक्षा में महत्व :- शिक्षा का पाठयक्रम और शिक्षण विधियां का समस्याओं का समाधान मूल्यमीमांसा से हल होता है।

4.तर्क चिंतन / तर्कमीमांसा/ तर्क विज्ञान /तर्कशास्त्र ( Logic) 

तर्कशास्त्र शब्द अंग्रेजी 'Logic -लॉजिक' का अनुवाद है। प्राचीन भारतीय दर्शन में इस प्रकार के नाम वाला कोई शास्त्र प्रसिद्ध नहीं है। भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र का जन्म स्वतंत्र शास्त्र के रूप में नहीं हुआ। अक्षपाद! गौतम या गौतम (300 ई०) का न्यायसूत्र पहला ग्रंथ है, जिसमें तथा कथित तर्कशास्त्र की समस्याओं पर व्यवस्थित ढंग से विचार किया गया है। तर्क शास्त्र में अवधारणाएं , सिद्यांत , परिकल्पनाएं, , स्वम्यसिधी ( Postulates) इत्यादि का विकास होता है ।

  • ज्ञान को अर्जित करनेका साधन या
  • चिंतन से ज्ञान प्राप्त करने के साधनोंका बोध होता है।

शिक्षा में महत्व :- शिक्षाकी प्रक्रिया,शिक्षा का पाठयक्रम , विद्यालय का अनुशासन इत्यादि समस्याओं का हल करता है।



दर्शन का वर्गीकरण 

(A) पाश्चात्य सम्प्रत्यय के अनुसार दर्शन के प्रकार :- इसको हम दर्शन का मुख्य तत्व भी कहते है ।

  • तत्वामीमांसा
  • ज्ञानमीमांसा
  • मल्यामीमांसा
  • तर्कशास्त्र

(B) भारतीय सम्प्रत्यय से दर्शन के प्रकार :-

भारतीय दर्शन में वेदोंका विशेष महत्व है । इसलिए दर्शन का मूल्य उद्गम वेदों से हुए है, फिर भी समस्त भारतीय दर्शन को आस्तिक एवं नास्तिक दो भागों में विभक्त किया गया है। जो ईश्वर तथा वेदोक्त बातों जैसे न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदांत पर विश्वास करता है, उसे आस्तिक माना जाता है; जो नहीं करता वह नास्तिक है।

(1) आस्तिक या वैदिक दर्शन

वैदिक परम्परा के 6 दर्शन हैं :

(1) मीमांसा 

(2) न्याय 

(3) वैशेषिक 

(4) सांख्य 

(5) योग 

(6) वेदान्त

यह दर्शन पराविद्या, जो शब्दों की पहुंच से परे है, का ज्ञान विभिन्न दृष्टिकोणों से समक्ष करते हैं। प्रत्येक दर्शन में अन्य दर्शन हो सकते हैं, जैसे वेदान्त में कई मत हैं।

(2) नास्तिक या अवैदिक दर्शन

  • चार्वाक दर्शन (यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है।)
  • बौद्ध दर्शन
  • जैन दर्शन

नोट - [ प्रायः लोग समझते है कि जो ईश्वर को नहीं मानता वह नास्तिक है पर यहाँ नास्तिक का अर्थ वेदों को न मानने से है इसलिए ऊपर दिए गए तीनो दर्शन नास्तिक दर्शन में आते है ]



शिक्षा के घटक ( Component of Education)

  1. शिक्षा के लक्ष्य और उद्देश्य
  2. शिक्षा की प्रकिया
  3. शिक्षा का पाठयक्रम
  4. शिक्षण विधियां
  5. शिक्षण की प्रविधियां
  6. शिक्षण की भूमिका
  7. शिक्षण का प्रबंधन
  8. शिक्षा का मूल्यांकन

शिक्षा और दर्शन में संबंध

एक सच्चा दार्शनिक वही कहलाता है, जो ज्ञानी होता है और यह ज्ञान शिक्षा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है | इस प्रकार दर्शन एवं शिक्षा के मध्य गहन सम्बन्ध है | व्यक्ति के व्यव्हार को सुधार की दिशा मे परिवर्तित करने वाले विचारों को शिक्षा मे रखा जाता है| कुछ विद्वानों ने समग्र जीवन को शिक्षा और शिक्षा को जीवन माना है | व्यक्ति जीवन मे सदविचारों को 'दर्शन' द्वारा ही प्राप्त कर सकता है और दर्शन मे जीवन जगत से सम्बंधित समस्याओं का अध्यन किया जाता है | अतः शिक्षा एवं दर्शन पुर्णतः एक-दूसरे पर आश्रित है | 




दर्शन एवं शिक्षा के मध्य सम्बन्ध में विद्वानों ने अपने-अपने विचारों को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है -

    (1) फिक्टे-"दर्शन के आभाव मे शिक्षण कला मे पुर्णतः स्पष्टता नहीं आ सकती |"

    (2) जी ई पार्टिज-"गहन अर्थ मे यह कहना विवेक संगत होगा कि दर्शन शिक्षा पर आधारित है और शिक्षा दर्शन पर |"

    (3) रास-"दर्शन व शिक्षा एक सिक्के के दो पहलूओं के समान हैं | एक मे दूसरा निहित है | दर्शन जीवन का विचारात्मक पक्ष है तथा शिक्षा क्रियात्मक |"

    (4) एडम्स-"शिक्षा दर्शन का गत्त्यात्मक पक्ष है | यह दार्शनिक विश्वास सक्रिय पक्ष एवं जीवन के आदर्शों कि प्राप्ति का व्यावहारिक साधन है |"

    (5) स्पेंसर-"वास्तविक शिक्षा, वास्तविक दर्शन द्वारा ही क्रियान्वित हो सकती है |"

    (6) जेन्टाइल-"शिक्षा दर्शन की सहायता के बिना सही मार्ग पर नहीं बढ़ सकती है|"

शिक्षा और दर्शन के संबंध के स्वरूपको स्पष्टीकरण के लिए शिक्षा और दर्शन के संबंध के स्वरूपको स्पष्टीकरण के लिए चार आयामों की सहायताली जाती है।

1. सामान्य सहसंबंधआयाम ( Normal Relationship Approach )

2. कारण प्रभावसहसंबंध आयाम ( Cause effect Relationship Approach)

3. विश्लेषणात्मक सहसंबंध आयाम ( Analytical Relationship Approach)

4. अंतर्विषयक आयाम ( Interdisciplinary Approach)

(1) सामान्य सहसंबंध आयाम:- यह वर्तमान शिक्षा के स्वरूप का अध्ययन करता है , जिसमें दर्शन के सभी तत्व प्रभावित करता है।

(2) कारण प्रभाव सहसंबंध आयाम:- शिक्षाके स्वरूप के अतीत परिवर्तन के कारणोंको जानने काप्रयासकिया जाता है।

जैसे - पहले की शिक्षा नीति समाज कोकैसे प्रभावित किया है।

(3) विश्लेषणात्मक सह संबंध आयाम:- यह दर्शन के तत्वों और शिक्षाका आपसीसंबंधोंका विश्लेषण करता है।

  • तत्वामीमांसा और शिक्षा ( उद्देश्य और विधियां )
  • ज्ञानमीमांसा और शिक्षा ( उद्देश्य , विधियां , पाठयक्रम तथा प्रक्रिया )
  • मल्यामीमांसा और शिक्षा ( उद्देश्य और शिक्षणक्रियाकलाप )
  • तर्कशास्त्र ( विधियां , प्रविधियां और सूत्र )

(4) अंतर्विषयक आयाम :-शिक्षा में सभी विषयोंका उत्तर दर्शनदेता है अर्थात दर्शन का संबंधशिक्षाके सभी विषयोंके साथ है ।

जैसे - शैक्षिक दर्शन या शिक्षा दर्शन , शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षा तकनीकी , शिक्षा समाजशास्त्र, शैक्षिक निर्देशन इत्यादि।

शिक्षा दर्शन और शिक्षा का दर्शन 

( Educational Philosophy & Philosophy of Education)

(A) शिक्षा दर्शन या शैक्षिक दर्शन ( Educational Philosophy) :- 

शिक्षा दर्शन या शैक्षिक दर्शन में शिक्षा सम्बंधित समस्याओं को दार्शनिक दृष्टिकोण और दार्शनिक विधियों से हल करनेकी  दर्शनिक प्रक्रिया है जिससे विशिष्ट निष्कर्ष और परिणाम निकलते हैं शैक्षिक दर्शन कहते हैं।

या 

शिक्षा दर्शन अध्ययन की वह शाखा है जिसमें शिक्षाकीसमस्याओं, अर्थ ,उद्देश्य , पाठयक्रम, विधियां ,शिक्षक और छात्र की भूमिकाएंके संदर्भ में दार्शनिक विचारोंकी समीक्षा की जाती है।

हंडरसन के अनुसार - शिक्षा दर्शन , शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन में दर्शन का प्रयोग है ।


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