NCF-2005
परिचय
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 (एनसीएफ 2005) भारत में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा 2005 में प्रकाशित चौथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा है जिसे शिक्षा सचिव , भारतेन्द्र सिंह बसवान द्वारा सन 02 मई 2005 के द्वारा शिक्षा में लागू किया गया । इसके पूर्ववर्ती 1975, 1988, 2000 में प्रकाशित हुए थे।
NCF 2005 ने अपनी रूपरेखा को शिक्षा पर पिछली सरकारी रिपोर्ट , जैसे लर्निंग विदाउट बर्डन , राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986-1992, और फोकस ग्रुप डिस्कशन के आधर पर यह रिर्पोट को तैयार किया गया था।
NCF-2005 क्या है?
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 एक ऐसा दस्तावेज हैं। जिसमे ऐसे विषयो पर चर्चा की गई हैं। कि बालको को क्या और किस प्रकार से पढ़ाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 की उत्पत्ति रविन्द्र नाथ टैगोर के ” सभ्यता की संस्कृति” नामक निबन्ध से हुई हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार स्कूली शिक्षा पाठ्य पुस्तक केंद्रित ना होकर बाल केंद्रित हो। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गयी 22 भाषाओं में भी किया गया हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 को विभिन्न प्रकार शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, विषय – विशेषज्ञों के द्वारा तैयार किया गया हैं। इस NCF-2005 के रुपरेखा निर्माण के अध्यक्ष प्रो. यशपाल थे.
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के मार्गदर्शी सिद्धांत
- ज्ञान के स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
- पढ़ाई को रटने की प्रणाली से अलग किया जाए।
- पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केंद्रित ही बस ना हो।
- विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से जोड़ा जाए।
- राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति अस्थावान विद्यार्थी तैयार किया जाए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के प्रमुख सुझाव या विशेषताएं
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के प्रमुख सुझाव या विशेषताएं निम्नलिखित है।
1.विद्यार्थियों को दी जाने वाली शिक्षा में शिक्षण सूत्र – जैसे ज्ञात से अज्ञात की ओर ,मूर्त से अमूर्त की ओर शिक्षण सूत्रों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाए।
2.किसी भी प्रकार की सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
3.विशाल पाठ्यक्रम या बड़ी-बड़ी पुस्तकें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
4.मूल्य को उपदेश के द्वारा नहीं बल्कि उसी प्रकार का वातावरण बनाकर स्थापित किया जाए।
5.बच्चों को स्कूल में तनाव मुक्त वातावरण दिया जाए।
6.सहशैक्षिक के गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
7.पुनर्बलन का प्रयोग जैसे- सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप से प्रयोग किया जाए।
8.वे पाठ्यपुस्तक के ज्यादा उपयोगी हैं जो अंतः क्रिया का मौका दें।
पाठ्यचर्या एवम व्यवहार के लिए निहितार्थ
- रचनात्मक परिप्रेक्ष्य के अनुसार , सीखना ज्ञान के निर्माण की ही एक प्रक्रिया मानी गयी हैं। विद्यार्थियों पूर्व में दिए गए विचारों और उपलब्ध कराई गई सामग्री के आधार पर वह अपने ज्ञान का विस्तार करता हैं।
- ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया का एक सामाजिक पहलू यह भी है कि जटिल कार्य के लिए आवश्यक ज्ञान समूह परिस्थितियों में निहित होता है।
- बच्चों के संज्ञान में अध्यापकों की भूमिका भी पड़ सकती है यदि विज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में ज्यादा सक्रिय रूप से शामिल हो जाएं जिसमें बच्चे व्यस्त हैं।सीखने की प्रक्रिया में रुचि होने पर एक बालक या बालिका अपने ज्ञान का सृजन खुद करने लगता या लगती हैं।
- बच्चों को ऐसे प्रश्न पूछने की अनुमति दी जानी चाहिए जिससे कि स्कूल में जाने वाली चीजों को बाहरी दुनिया से जोड़ सकें एक ही तरीके अपने जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का विवरण में पाठ्यचर्या के क्षेत्र , स्कूल की अवस्थाएं और आकलन –
पाठ्यचर्या की जिस भाग में भाषा ,गणित ,विज्ञान सामाजिक विज्ञान, कला, शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा, काम और शिक्षा आवास और सीखना अध्ययन और आकलन की योजनाएं तथा आकलन और मूल्यांकन जैसे विषयों का समावेश है।
NCF-2005 में गणित विषय से संबंधित विशेषताएं
- गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे की गणितीयकरण की क्षमताओं का विकास करना है।
- स्कूली गणित का सिमित लक्ष्य है - लाभप्रद क्षमताओं का विकास , विशेषकर अंक ज्ञान से जुडी क्षमताएँ , सांख्यिक संक्रियाए , माप ,दशमलव व प्रतिशत ।
- इससे उच्च उद्देश्य है - बच्चे के साधनों को विकसित करना ताकि वह गणितीय ढंग से सोच सके व तर्क कर सके , मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकल सके और अमूर्त को समझ सके।
- गणित माध्यमिक स्कुल तक एक अनिवार्य विषय है।
स्कूली गणित को बेहतर करने की पहल
- बच्चे गणित से भयभीत होने की बजाए उसका आनंद उठाए ।
- बच्चे महत्वपूर्ण गणित सीखें , गणित में सूत्रों व यांत्रिक प्रक्रियाओं से आगे भी बहुत कुछ है ।
- बच्चे गणित को ऐसा विषय मने जिस पर वे आपस में बात कर सकते है . जिससे सम्प्रेषण हो सकता है ।
- बच्चे सार्थक समस्याए उठाए और उन्हें हल करें
- बच्चे अमूर्त का प्रयोग संबंधो को समझने ,संरचनाओ को देख पाने और चीजो का विवेचन करने, कथनों की सत्यता या असत्यता को लेकर तर्क करने में कर पाएं
- बच्चे गणित की मूल संरचना को समझें - अंकगणित,बीजगणित,रेखागणित,त्रिकोणमिती।स्कूली गणित सभी मूल तत्व अमूर्त की प्रणाली , संघटन और सामान्यीकरण के लिए मुहैया करते है .
- अध्यापक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास के आधार पर काम करे की प्रत्येक बच्चा सिख सकता है.
- समाधान की युक्तियाँ (अमूर्तता,परिमाणन ,सद्रश्यता,स्थिति विश्लेषण,समस्या को सरल रूप में बदलना ,अनुमान लगाना व उसकी पुस्टी करना ). बच्चों को सीखाना .
- गणित व अन्य विषयों के अध्ययन के बीच सम्बन्ध बनाने की भी आवश्यकता है , जब बच्चे ग्राफ बनाना सीखते है तो उन्हें भू-विज्ञान सहित विभिन्न विज्ञानों के कार्यात्मक संबंधो के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
स्कूली गणित शिक्षा की कुछ समस्याएँ
- बहुत से बच्चे गणित से डरते है और इस विषय में असफलता से भयभीत रहते है। वे जल्दी ही गणित की गंभीर पढाई से विमुख हो जाते है ।
- यह पाठ्यक्रम केवल इससे विमुख होने वालों के लिए ही निराशाजनक नहीं है बल्कि यह प्रतिभाशाली बच्चो के लिए भी कोई चुनौति नहीं पेश करती ।
- समस्याएँ ,अभ्यास व मूल्यांकन पद्दति यांत्रिक है और दुहरावग्रस्त है . इसमें संगणना पर अत्यधिक जोर दिया गया है . इसमें स्थानिक चिंतन जैसे गणितीय क्षेत्रों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है।
- अध्यापकों में आत्मविश्वास, व तयारी की कमी है और उन्हें आवश्यक मदद भी नहीं मिल रही है ।
(A) पूर्व प्राथमिक स्तर-
- सारा अधिगम खेल के माध्यम से होता है , उपदेशात्मक सम्प्रेषण के जरिये नहीं।
- गिनती को क्रम में रटने की बजाय बच्चो को यह सिखने और समझने की जरुरत है की छोटे समुच्चयों के सन्दर्भ में नाम के खेल और संख्या में और गिनती एवं मात्रा में क्या जुडाव है ।
- सरल तुलनाए और वर्गीकरण करना ।
- बच्चो को अपने विचारो को व्यक्त करने के लिए उनकी भाषा को प्रोत्साहित करना ।
(B)प्राथमिक स्तर पर -
- बच्चे में गणित के लिए सकारात्मक रुझान और रूचि विकसित करना।
- गणितीय खेल , पहेलियाँ और कहानियां सकारात्मक रुझान पैदा करने में सहायक होती है ।
- अवधारणाओं को समझ कर मूर्त से अमूर्त की ओर ले जाना ।
- प्राथमिक स्तर पर बच्चो को गणनात्मक कौशल के आलावा , पैटर्न को पहचानने , अभिव्यक्त करने और समझाने पर, या समस्याओं के हल में आकलन करने और अनुमान का इस्तेमाल करने , सम्बाध पहचानने और सम्प्रेषण व तर्क की द्रष्टि से भाषागत कौशल का विकास पर जोर दिया जाना चाहिए।
- विद्यार्थी बिजगणितीय संकेतो से परिचित होते है और स्थान और आकारों की समस्याए हल करने और सामान्यीकरण में उनका उपयोग सीखते है ।
- आंकड़ो का उपयोग, प्रस्तुति ,और व्याख्या।
- इस स्तर का अधिगम विद्यार्थियों की द्विआयामी व त्रिआयामी समझ तथा काल्पन कौशल को सम्रिथ्द बनाने का भी अवसर प्रदान करता है ।
BCF -2008
( Equity , Harmony and Excellence )
BCF 2008 का फुल फॉर्म “Bihar Curriculum Framework 2008” है जिसे हिंदी में बिहार पाठ्यक्रम ढांचा 2008 या बिहार पाठ्यक्रम की रुपरेखा 2008 के नाम से जानते हैं। ये बिहार द्वारा खुद के राज्य के शिक्षा पाठ्यक्रम को अलग और अपने अनुसार चलाने के लिए किया गया शोध है।
बिहार पाठ्यचर्या रूपरेखा 2008 की थीम (Theme)- समानता, सदभाव तथा उत्कृष्टता के लिए शिक्षा।
NCF-2005 के निर्माण के बाद बिहार सरकार एक वर्ष तक अध्ययन कर 03 दिसम्बर 2006 ई में BCF-2006 का रिपोर्ट हिंदी और अंग्रेजी में मुद्रित करा कर शैक्षिक लोगों - अध्यापक , प्राध्यापक , प्रवक्ता, रिसर्च स्कॉलर , विषय विशेषज्ञ, अभिभावक तथा शिक्षा में रूचि रखने वाले लोगों के बीच प्रतिपुष्टि के लिए सामने रखा . प्रतिपुष्टि के लिए 4- दिवसीय कर्येशाला , 1 दिवसीय संगोष्टि , 1 दिवसीय संवाद संगोष्टि स्कूल , कॉलेज , विश्वविद्यालय इत्यादि स्तर पर किया गया था । इसके लिए एक 19 सदस्यीय समिति का गठन किया गया जिसमे कुछ सदस्य इस प्रकार से हैं ।
- श्री विनय कुमार कंठ - अध्यक्ष
- हसन वारिस ( निदेशक प्रभारी )
- श्री इन्दुमौली त्रिपाठी - सदस्य सचिव
- डॉ एस ए मोबिन - सदस्य सचिव
- डॉ ज्ञान देव मणि त्रिपाठी , SCERT
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के मार्गदर्शी सिद्धांत में पांचवा सिद्धांत बिहार के SCERT ( 1981 ) के अनुरोध पर जोड़ा गया था।
- ज्ञान के स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
- पढ़ाई को रटने की प्रणाली से अलग किया जाए।
- पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केंद्रित ही बस ना हो।
- विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से जोड़ा जाए।
- राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति अस्थावान विद्यार्थी तैयार किया जाए।
BCF-2008 में गणित विषय से संबंधित विशेषताएं
- गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे की गणितीयकरण की क्षमताओं का विकास करना है।
- स्कूली गणित का सिमित लक्ष्य है - लाभप्रद क्षमताओं का विकास , विशेषकर अंक ज्ञान से जुडी क्षमताएँ , सांख्यिक संक्रियाए , माप ,दशमलव व प्रतिशत ।
- इससे उच्च उद्देश्य है - बच्चे के साधनों को विकसित करना ताकि वह गणितीय ढंग से सोच सके व तर्क कर सके , मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकल सके और अमूर्त को समझ सके।
- गणित माध्यमिक स्कुल तक एक अनिवार्य विषय है।
स्कूली गणित को बेहतर करने की पहल
- बच्चे गणित से भयभीत होने की बजाए उसका आनंद उठाए ।
- बच्चे महत्वपूर्ण गणित सीखें , गणित में सूत्रों व यांत्रिक प्रक्रियाओं से आगे भी बहुत कुछ है ।
- बच्चे गणित को ऐसा विषय मने जिस पर वे आपस में बात कर सकते है . जिससे सम्प्रेषण हो सकता है ।
- बच्चे सार्थक समस्याए उठाए और उन्हें हल करें
- बच्चे अमूर्त का प्रयोग संबंधो को समझने ,संरचनाओ को देख पाने और चीजो का विवेचन करने, कथनों की सत्यता या असत्यता को लेकर तर्क करने में कर पाएं
- बच्चे गणित की मूल संरचना को समझें - अंकगणित,बीजगणित,रेखागणित,त्रिकोणमिती।स्कूली गणित सभी मूल तत्व अमूर्त की प्रणाली , संघटन और सामान्यीकरण के लिए मुहैया करते है .
- अध्यापक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास के आधार पर काम करे की प्रत्येक बच्चा सिख सकता है.
- समाधान की युक्तियाँ (अमूर्तता,परिमाणन ,सद्रश्यता,स्थिति विश्लेषण,समस्या को सरल रूप में बदलना ,अनुमान लगाना व उसकी पुस्टी करना ). बच्चों को सीखाना .
- गणित व अन्य विषयों के अध्ययन के बीच सम्बन्ध बनाने की भी आवश्यकता है , जब बच्चे ग्राफ बनाना सीखते है तो उन्हें भू-विज्ञान सहित विभिन्न विज्ञानों के कार्यात्मक संबंधो के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
स्कूली गणित शिक्षा की कुछ समस्याएँ
- बहुत से बच्चे गणित से डरते है और इस विषय में असफलता से भयभीत रहते है। वे जल्दी ही गणित की गंभीर पढाई से विमुख हो जाते है ।
- यह पाठ्यक्रम केवल इससे विमुख होने वालों के लिए ही निराशाजनक नहीं है बल्कि यह प्रतिभाशाली बच्चो के लिए भी कोई चुनौति नहीं पेश करती ।
- समस्याएँ ,अभ्यास व मूल्यांकन पद्दति यांत्रिक है और दुहरावग्रस्त है . इसमें संगणना पर अत्यधिक जोर दिया गया है . इसमें स्थानिक चिंतन जैसे गणितीय क्षेत्रों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है।
- अध्यापकों में आत्मविश्वास, व तयारी की कमी है और उन्हें आवश्यक मदद भी नहीं मिल रही है ।
(A) पूर्व प्राथमिक स्तर-
- सारा अधिगम खेल के माध्यम से होता है , उपदेशात्मक सम्प्रेषण के जरिये नहीं।
- गिनती को क्रम में रटने की बजाय बच्चो को यह सिखने और समझने की जरुरत है की छोटे समुच्चयों के सन्दर्भ में नाम के खेल और संख्या में और गिनती एवं मात्रा में क्या जुडाव है ।
- सरल तुलनाए और वर्गीकरण करना ।
- बच्चो को अपने विचारो को व्यक्त करने के लिए उनकी भाषा को प्रोत्साहित करना ।
(B)प्राथमिक स्तर पर -
- बच्चे में गणित के लिए सकारात्मक रुझान और रूचि विकसित करना।
- गणितीय खेल , पहेलियाँ और कहानियां सकारात्मक रुझान पैदा करने में सहायक होती है ।
- अवधारणाओं को समझ कर मूर्त से अमूर्त की ओर ले जाना ।
- प्राथमिक स्तर पर बच्चो को गणनात्मक कौशल के आलावा , पैटर्न को पहचानने , अभिव्यक्त करने और समझाने पर, या समस्याओं के हल में आकलन करने और अनुमान का इस्तेमाल करने , सम्बाध पहचानने और सम्प्रेषण व तर्क की द्रष्टि से भाषागत कौशल का विकास पर जोर दिया जाना चाहिए।
- विद्यार्थी बिजगणितीय संकेतो से परिचित होते है और स्थान और आकारों की समस्याए हल करने और सामान्यीकरण में उनका उपयोग सीखते है ।
- आंकड़ो का उपयोग, प्रस्तुति ,और व्याख्या।
- इस स्तर का अधिगम विद्यार्थियों की द्विआयामी व त्रिआयामी समझ तथा काल्पन कौशल को सम्रिथ्द बनाने का भी अवसर प्रदान करता है ।
Very good effort 😃
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