Monday, March 28, 2022

भारतीय संविधान अनुच्छेद 21 (Article 21 )

 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 

(प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण)

परिचय :- निजता का अधिकार, समानता का अधिकार है या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हो इसी विषयों को संज्ञान में लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसले दिए । तब जाकर जीने का अधिकार, निजता के अधिकार और स्वतंत्रता के अधिकार को अलग-अलग करके नहीं बल्कि समग्र रूप में देखा जाने लगा | यहाँ हम आज अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान मौलिक अधिकार के रूप में जीवन जीने के अधिकार के रूप में अध्ययन किया जाता है। अनुच्छेद 21, भाग – 3 (12-35) के बीच में एक मौलिक अधिकार है जिसमे ” जीवन ( Live ) और स्वतंत्रता या निजता( Freedom or privacy )  ” का मौलिक अधिकार सुनिश्चित किया गया है 
इस अनुच्छेद का अधिकार क्षेत्र बहुत ही व्यापक है, और यह नियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, जो कि भारत के मूल निवासी हैं, और जिनके पास भारत देश की नागरिकता है। इसमें किसी भी व्यक्ति के लिए कोई रोक - टोक नहीं होती है, सभी को समानता का अधिकार है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है, जिसमे यह कहा गया है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के आलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सर्वोच्छ न्यायालय जाने का अधिकार है, वह सर्वोच्च्य न्यायालय में किसी भी सर्वोच्च्य न्यालय के वकील के माध्यम से अपनी याचिका दायर कर सकता है। इसी कारण एक वकील ही एकमात्र ऐसा यन्त्र होता है, जो किसी पीड़ित व्यक्ति को सही रास्ता दिखने में लाभकारी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि वकील को कानून और संविधान की उचित जानकारी होती है, तो वह मामले से सम्बंधित सभी प्रकार के उचित सुझाव भी दे सकता है। लेकिन इसके लिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस वकील को हम अपने मामले को सुलझाने के लिए नियुक्त कर रहे हैं, वह अपने क्षेत्र में निपुण वकील होना चाहिए, और उसे संविधान से सम्बंधित और अनुच्छेद 21 के मामलों से निपटने का उचित अनुभव होना चाहिए, जिससे आपके केस जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।

अर्थ :- अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य की सावधानी का अधिकार वैसा ही है, जैसे जीवन का अधिकार होता है। यह अनुच्छेद भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन जीने और उसकी निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, यदि कोई अन्य व्यक्ति या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे उच्चतम न्यायलय तक जाने का अधिकार होता है। अन्य शब्दों में किसी भी प्रकार का क्रूर, अमाननीय उत्‍पीड़न या अपमान जनक व्‍यवहार चाहे वह किसी भी प्रकार की जॉंच के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्‍न से या किसी अन्‍य स्‍थान पर हो, तो यह इस अनुच्‍छेद 21 का अतिक्रमण करता है, जो कि भारतीय संविधान के अनुसार वर्जित है। यह एक मूल अधिकार है, इसमें कहा गया है, कि किसी व्‍यक्ति को उसके जीवन और निजता की स्‍वतंत्रता से बंछित किये जाने संबंधी कार्यवाही उचित ऋजु एवं युक्तियुक्‍त होनी चाहिए। य‍ह सब अनुच्‍छेद 21 के अंतर्गत आता है।

अनुच्‍छेद 21 का उद्देश्य :- भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों की श्रेणी में वर्णित अनुच्‍छेद 21 का उद्देश्य भी बहुत व्यापक रूप में निहित किया गया है इसके अंतर्गत सभी व्‍यक्तियों को समान रूप से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है और किसी व्यक्ति पर किसी प्रकार की जोर जबरदस्‍ती न की जाये ऐसे भावना है | आपके बता दें कि यहां जीवन जीने का अधिकार अपने आप में एक व्यापक अर्थ लिए हुए हैं जीवन जीने के अधिकार से मतलब किसी भी तरह या पशुओं की भाँति जीवन जीने से नहीं है बल्कि प्रतिष्ठित अथवा मानव गरिमा युक्त जीवन जीने से है।

निजता का अर्थ क्या है?

निजता का अर्थ है "लोगों के ध्यान से घुसपैठ या किसी के कृत्यों या निर्णयों में हस्तक्षेप से मुक्त होने की स्थिति या स्थिति।"
निजता के अधिकार का अर्थ है:

  • व्यक्तिगत स्वायत्तता का अधिकार।

  • किसी व्यक्ति और व्यक्ति की संपत्ति का अनुचित सार्वजनिक जांच या जोखिम से मुक्त होने का अधिकार।

जबकि निजता के आक्रमण का अर्थ है "किसी के व्यक्तित्व का अनुचित शोषण और किसी की व्यक्तिगत गतिविधियों में घुसपैठ।" निजता को "अकेले रहने के अधिकार" के पर्याय के रूप में भी माना जाता है।


अगस्त 2017 को भारत की माननीय सर्वोच्छ न्यायालय ने देश के लिए एक सबसे अहम फैसला लिए जिसमें निजी स्वतंत्रता के अधिकार को भारतीय संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों की श्रेणी दी गयी। इस फैसले में सर्वोच्छ न्यायालय की 9 सदस्यीय बेंच ने एक साथ मिलकर अपना फैसला सुनाया, जिसमें चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस आर. के. अग्रवाल, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस ए. एम. सप्रे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस. के. कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ये जज लोग शामिल थे।

इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था, कि निजता को मुख्य रूप से तीन जोन में बांटा जा सकता है। जिसमें पहला है, आंतरिक जोन, जिसके अंतर्गत शादी, बच्चे पैदा करना आदि मामले आते हैं। दूसरा है, प्राइवेट जोन, जहां हम अपनी निजता को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से साझा नहीं करना चाहते, जैसे अगर बैंक में खाता खोलने के लिए हम अपना डेटा देते हैं, तो हम चाहते हैं, कि बैंक ने जिस उद्देश्य से हमारा डेटा लिया है, उसी उद्देश्य से तहत वह उसका इस्तेमाल करे, किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को वह डेटा न दे। वहीं, तीसरा होता है, पब्लिक जोन। इस दायरे में निजता का संरक्षण न्यूनतम होता है, लेकिन फिर भी एक व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक निजता बरकरार रहती है। वहीं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी की थी, कि अगर किसी व्यक्ति से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान - सम्मान को ठेस पहुंचाता है, तो वह निजता के मामले के अंतर्गत आता है। चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान - सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा। स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान - सम्मान का अधिकार आता है, और मान सम्मान के दायरे में निजता का मामला आता है।


क्या है निजी स्वतंत्रता का अधिकार?

निजी स्वतंत्रता या राईट टू प्राइवेसी का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किया गया है, जो कि भारत के नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसके अंतर्गत भारत देश के किसी व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं,


  1. भारतीय संविधान के इस प्रावधान के अंतर्गत कोई व्यक्ति अपनी निजी जानकारी किसी भी समय किसी भी अथॉरिटी या किसी व्यक्ति से प्राप्त कर सकता है।

  2. यदि किसी भी प्रकार के दस्तावेज में किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों में किसी भी प्रकार की त्रुटी हो गयी है, या कोई आवश्यक जानकारी छूट गयी है, तो वह व्यक्ति उस जानकारी को संशोधित करने के लिए आवेदन कर सकता है, और बिना किसी परेशानी के अपने दस्तावेजों को संसोधित करा सकता है।

  3. बिना किसी क़ानूनी नोटिस या समन के जिसमे न्यायालय द्वारा किसी बड़े मुद्दे को हल करने के लिए अपनी कुछ निजी जानकारी साझा करने का आदेश हो सकता है, तो ऐसे आदेश के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के सामने अपनी निजी जानकारी व्यक्त न करने की स्वतंत्रता भी इस अधिकार के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होती है।

  4. इस निजी स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत किसी भी नागरिक को इस बात की स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है, कि केवल वह यदि चाहे तो ही केवल उसकी निजी जानकारी किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के पास जाएगी अन्यथा नहीं जायेगी।

  5. निजी स्वतंत्रता का अधिकार इस बात की भी स्वतंत्रता भी देता है, कि एक व्यक्ति यह स्वयं तय कर सकता है, कि क्या राज्य उस व्यक्ति की निजी ज़िन्दगी के विषय में जान सकता है, यदि वह व्यक्ति राज्य को इस बात की अनुमति प्रदान नहीं करता है, तो राज्य की कोई भी अथॉरिटी उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित नहीं कर सकती है, और यदि कोई व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति को उसकी निजी जानकारी साझा करने के लिए बाधित करती है, तो वह व्यक्ति बिना किसी परेशानी के सीधे माननीय सर्वोच्छ न्यायालय में अपने निजी स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए अपील कर सकता है, और जहां से उस व्यक्ति को इन्साफ मिलेगा। 

  6. इस अधिकार के अनुसार कोई व्यक्ति जो जानकारी केवल अपने तक ही सीमित रखना चाहता है, वह केवल उसके ही पास रहेगी, किसी और व्यक्ति या संस्था के पास उस व्यक्ति की उस जानकारी को जानने का किसी प्रकार का कोई हक नहीं होगा।


निजता और समाज के विभिन्न पहलुओं से इसका संबंध

निजता व्यक्तियों, समूहों या समाज के प्रति निर्देशित एक मूल्य है जिसका अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता हैं। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जो अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, इसमें सभी धर्मों, रीति-रिवाजों और पृष्ठभूमि के लोग हैं और इसलिए यह पता लगाना आसान है कि एक चीज का मतलब पूरे देश के लिए समान नहीं हो सकता है और ऐसा ही निजता की स्थिति है। निजता का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग चीजें हैं। कुछ के लिए यह सूचना की निजता है, दूसरों के लिए शरीर की निजता और कुछ के लिए इसका कुछ अलग दृष्टिकोण हो सकता है। इसलिए निजता को समाज या देश के विभिन्न पहलुओं के साथ अलग-अलग पंक्तियों में पढ़ा जा सकता है जिस पर आगे चर्चा की गई है।

  • निजता अधिकार सरकार को लोगों की जासूसी करने से रोकते हैं (बिना कारण के)। 
  • निजता अधिकार समूहों को अपने लक्ष्यों के लिए व्यक्तिगत डेटा का उपयोग करने से रोकते हैं।
  • निजता अधिकार यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि डेटा चोरी या दुरुपयोग करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाता है।
  • निजता अधिकार सामाजिक सीमाओं को बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • निजता अधिकार विश्वास बनाने में मदद करते हैं।
  • निजता अधिकार सुनिश्चित करते हैं कि हमारे डेटा पर हमारा नियंत्रण रहे।
  • निजता अधिकार भाषण और विचार की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
  • निजता अधिकार आपको राजनीति में स्वतंत्र रूप से शामिल होने देते हैं।
  • निजता अधिकार प्रतिष्ठा की रक्षा करते हैं।
  • निजता अधिकार आपके वित्त की रक्षा करते हैं

निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अनिवार्य घटक है। निजता का अधिकार, अनुबंध के अलावा, एक विशेष विशिष्ट संबंध से भी उत्पन्न हो सकता है, जो वाणिज्यिक, वैवाहिक या यहां तक ​​कि राजनीतिक भी हो सकता है। निजता का अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है; यह अपराध की रोकथाम, अव्यवस्था या स्वास्थ्य या नैतिकता की सुरक्षा या अधिकारों की सुरक्षा और दूसरों की स्वतंत्रता के लिए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय – समय पर अलग अलग मामलों में निर्वचन द्वारा बहुत से अधिकारों को अनुच्छेद 21 में अंतर्निहित माना है | जैसे :

  • एकांतता का अधिकार
  • विदेश यात्रा का अधिकार
  • जीविकोपार्जन का अधिकार
  • मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • आहार पाने का अधिकार
  • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार
  • शीघ्र विचारण का अधिकार
  • चिकित्सा सहायता पाने का अधिकार
  • आश्रय का अधिकार
  • सार्वजनिक धूम्रपान पर निषेध
  • अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध संरक्षण
जीवन जीने के अधिकार के अंतर्गत निम्न अधिकारों को सम्मिलित किया गया

  • चिकित्सा का अधिकार |
  • शिक्षा का अधिकार |
  • पर्यावरण संरक्षण का अधिकार |
  • त्वरित विचारण का अधिकार |
  • कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण से संरक्षण का अधिकार |
  • निशुल्क विधिक सहायता का अधिकार |
  • लावारिस मृतकों का शिष्टता एवं शालीनता से दाह संस्कार का अधिकार |
  • भिखारियों के पुनर्वास का अधिकार |
  • धूम्रपान से संरक्षण का अधिकार |
  • विद्यार्थियों का रैगिंग से संरक्षण का अधिकार |
  • सौंदर्य प्रतियोगिताओं में नारी गरिमा को बनाए रखने का अधिकार |
  • बिजली एवं पानी का अधिकार |
  • हथकड़ी, बेडियों एवं एकांतवास से संरक्षण का अधिकार |
  • प्रदूषण रहित जल एवं हवा का उपयोग करने का अधिकार |

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