आदर्शवाद ====== प्रकृतिवाद
आदर्शवाद और प्रकृतिवाद के बीच का रास्ता ही प्रयोजनवाद है।
चार्ल्स सेण्डर्स पीयर्स के अनुसार : अर्थक्रियावाद/व्यवहारवाद
विलियम्स जेम्स : अनुभववाद/कलावाद
जॉनडिवी : साधनवाद/ प्रयोगवाद
किलपैट्रिक : प्रयोजनवाद
हिल्डा ताबा : फलवाद
** प्रयोजनवाद अमेरिका की देन है। यह आधुनिक समय का वाद है जो अमेरिका से प्रचलन हुआ।
प्रयोजनवाद या फलवाद या व्यावहारवाद का अर्थ :-
प्रयोजनवाद या व्यावहारिकवाद एक भौतिक वादी दर्शन हैI प्रयोजनवाद शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के “Pragma-प्रैग्मा” शब्द से हुई हैI जिसका अर्थ है क्रिया अथवा किया गया कार्य ।
कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार यह शब्द ग्रीक भाषा के “Pragmatikos-प्रेग्माटिकोस” शब्द से लिया गया हैI जिसका अर्थ है व्यावहारिकता अथवा उपयोगिता।
प्रयोजनवाद = प्रयो +जन +वाद , अर्थात एक ऐसा वाद जिसमें तथ्य या विषय विंदू से संबंधित प्रयोग कर या कार्य कर प्राप्त निष्कर्ष या फल के अनुसार व्यक्ति समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी हो प्रयोजनवाद कहलाता है।
अतः इस विचारधारा के अंतर्गत क्रियाशीलता तथा व्यावहारिकता को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। प्रयोजनवादियों का मानना है कि पहले किया गया कार्य या कोई भी किया गया प्रयोग पहले होता है फिर उसके फल के अनुसार विचारों अथवा सिद्धांतों का निर्माण होता हैI इसीलिए प्रयोजनवाद को प्रयोगवाद अथवा फलवाद के नाम से भी पुकारा जाता हैI प्रयोजनवाद को फलवाद इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस विचारधारा के अनुसार प्रत्येक क्रिया का मूल्यांकन उसके परिणाम अथवा फल के अनुसार निश्चित किया जाता है।
प्रयोजनवाद के अनुसार वही बातें सत्य हैं जिन्हें प्रयोग के द्वारा सिद्ध किया जा सकेI प्रयोजनवादियों का यह विश्वास है कि जो विचार अथवा सिद्धांत सत्य थेI यह आवश्यक नहीं है आज भी वह सत्य ही होI अतः प्रयोजनवाद आदर्शवादियों की भांति पूर्व निश्चित तथा प्रचलित सिद्धांतों के अनुसार निरंतर आदर्शों तथा मूल्यों को स्वीकार ना करके प्रत्येक निश्चित दर्शन का विरोध करते हैं तथा इस बात पर जोर देता है कि केवल वही आदर्श तथा मूल्य सत्य है जिसका परिणाम किसी काल तथा परिस्थिति में मानव के लिए व्यावहारिक लाभदायक फलदायक तथा संतोष जनक हो।
प्रयोजनवाद का परिभाषा
प्रेट के अनुसार “ प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धांत सत्य का सिद्धांत ज्ञान का सिद्धांत तथा वास्तविकता का सिद्धांत देता हैI”
विलियम जेम्स के अनुसार “ प्रयोजनवाद मस्तिष्क का एक स्वभाव और अभिवृत्ति है यह विचार और सत्य की प्रगति का सिद्धांत है और अंत में यह वास्तविकता का सिद्धांत देता हैI”
कैण्डल के अनुसार- ‘‘प्रयोगवाद अमरीकी मस्तिष्क की व्यावहारिकता की प्रतिच्छाया है जो नवागत लोगों की जीवन की समस्या और उनके समाधान के फलस्वरूप उत्पन्न हुई।’’
रोजन के अनुसार- ‘‘प्रयोजनवाद सत्य तथा अर्थ के सिद्धान्त को प्रधानता देने के कारण मूलत: ज्ञानवादी विचारधारा है। इस विचारधारा के अनुसार सत्य को केवल उसके व्यावहारिक परिणामों से जाना जा सकता है। अत: सत्य निरपेक्ष की अपेक्षा वैयक्तिक या सामाजिक वस्तु है।’’
प्रयोजनवाद दर्शन की वह शाखा है, जो किसी पूव-सिद्ध सत्य को स्वीकार नहीं करतीं। इसे अर्थ-क्रियावाद, व्यवहारवाद, करणवाद, पुनर्रचनावाद, अनुभववाद, फलानुमेय-प्रामाण्यवाद, प्रयोगवाद आदि संज्ञाओं से भी अभिहित किया जाता है। ये सभी संज्ञायें प्रयोजनवाद के लक्षणों की व्याख्या करती है, यह अमरीकी जन जीवन से उद्भुत दार्शनिक प्रणाली है।
प्रयोजनवाद का दार्शनिक दृष्टिकोण
1.प्रयोजनवाद और तत्वामीमांसा - प्रयोजनवादी मन तथा पदार्थ एक पृथक और स्वतंत्र तत्वों के रूप मे अस्वीकार करते हैं। वे अपने सत्ता-विज्ञान को अनुभव की धारणा पर आधारित करते हैं। प्रयोजनवादियों के अनुसार प्राकृतिक नियम की धारणा निर्देशात्मक हेाने के बजाय वर्णनात्मक है ये वास्तविकता को सूक्ष्म वस्तु नहीं मानते है।
वे इसको कार्य सम्पादन की प्रक्रिया समझते है जिसमें दो बातें निहित हैं- कार्य करना और कार्य तथा उसके परिणाम से अर्थ निकालना। पियर्स का कथन है- ‘‘प्रयोजनवाद स्वयं में तत्व-दर्शन का सिद्धान्त नहीं और न यह वस्तुओं के सत्य को निर्धारित करने के लिये को प्रयास है। यह केवल कठिन शब्दों और अमूर्त धारणाओं के अर्थ को निश्चित करने की विधि है।’’
2. प्रयोजनवाद और ज्ञानमीमानसा - ज्ञान अनुभव में निहित है। अनुभव तात्कालिक या मध्यस्थ हो सकता है। तात्कालिक अनुभव, अनुभूति की वस्तु है। तात्कालिक अनुभव मनुष्य तथा उसके मन की अपने वातावरण के प्रति की जाने वाली पारस्परिक क्रिया है।
प्रयोजनवादी प्रयोगात्मक विधि को ज्ञान प्राप्ति के साधन मानते हैं। इसके लिए हम शोध प्रक्रिया को अपनाते हैं।
3. प्रयोजनवाद और मूल्यामीमंसा -
- व्यावहारिक
- प्रामाणिक
- सत्यापित
नैतिक मूल्य मानव एव समाज के मध्य होने वाली आदान-प्रदान की प्रक्रिया का प्रतिफल है। अच्छा वह है जो सर्वोत्तम ढंग से अनिण्चित परिस्थितियों का समाधान करती है। प्रयोजनवादी-समस्याओं के समाधान में बुद्धि के प्रयोग की अच्छा मानते हैं।
सुन्दर क्या है? इस सन्दर्भ में प्रयोजनवादी के अनुसार सुन्दर वहीं है जिसे हम अपने अनुभव से सुन्दर मानते हैं। कला की जो कृति हमें अपनी ओर आकृष्ट कर सकती है और गहन रूप से अनुभूति करने के लिये तत्पर बना सकती है, वही सुन्दर है।
धर्म क्या है? इस सन्दर्भ में डी0वी0 ने लिखा है कि ‘‘धर्म किसी बात की स्वीकृति है जो पृथक है और जिसका स्वयं के द्वारा अस्तित्व है। धार्मिक के अर्थ को स्पष्ट करते हुये डी0वी0 ने लिखा है कि इसके अन्तर्गत वे दृष्टिकोण आते हैं जो किसी वस्तु तथा किसी निर्धारित साध्य या आदर्श के प्रति बनाये जा सकते है।
ईश्वर क्या है? इस सन्दर्भ में डी0वी0 ने लिखा है कि ईश्वर आदर्श तथा वास्तविकता के मध्य सक्रिय सम्बंध है।
4. प्रयोजनवाद और तर्कशास्त्र -
आगमन विधि , वैज्ञानिक विधि , प्रायोगिक परीक्षा को महत्व देते हैं जो व्यावहारिक हो जिससे व्यक्ति,समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी हो।
प्रयोजनवाद के सिद्धांत
ब्राइटमैन का कथन है- ‘‘प्रयोजनवाद सत्य का मापदण्ड है। सामान्य रूप में यह वह सिद्धान्त है, जो समस्त विचार प्रक्रिया के सत्य की जॉच उसके व्यावहारिक परिणामों से करता है। यदि व्यावहारिक परिणाम संतोषजनक है तो विचार-प्रक्रिया को सत्य कहा जा सकता है।’’’प्रयोजनवाद के सिद्धान्त है-
- जो सिद्धान्त कार्य करते है, वे सत्य हैं। सत्य परिवर्तनणील है।
- मानव प्रयासों का अत्यधिक महत्व है।
- अनुभव अनेक प्रकार से सम्बंधित व बदलते रहते है।
- जीवन और उससे सम्बंधित विभिन्न क्रियायें वास्तविक है।
- सिद्धान्त की कसौटी उसकी वास्तविकता है।
- प्रयोजनवाद प्रकृतिवादी सिद्धान्तों और आदर्शवादी निष्कर्णो का योग है।
- सत्य मानव निर्मित हेाता है, और जीवन के मूल्य और सत्य बदलते रहते है।
- दर्शन का मुख्य कार्य अनुभवों को, सम्भावनाओं को संगठित करना है।
- अन्तिम अपरिवर्तित और सदैव ठीक उतरने वाली पद्धति की स्थापना साध् ान के रूप में उसका महत्व नष्ट कर देती है।
- जो बात उद्देश्य पूरा करे इच्छाओं को संतुष्ट करे वही सत्य है। समस्या के अर्थ को समझकर ही हल करने का प्रयास करें।
- विचारों की सभी पद्धतियो का सम्बंध उस स्थिति और व्यक्तियों से है जिसमें वे उत्पन्न होती हैं, और जिसको वे सन्तुष्ट करती है। उनमे परिणामों द्वारा सदैव परिवर्तन हो जाता है।
- जीव विज्ञान द्वारा यह सिद्ध है कि जीवन मनो शारीरिक प्राणी है, और विचार उस स्थिति से अनुकुलन करने का साधन है, जिनमे कठिनाइयां एवं समस्यायें उपस्थित होती है।
संझेप में उपर्युक्त सिद्धांत को निम्न कथनों में कह सकते हैं।
- सत्य की परिवर्तनशील प्रकृतिI
- वर्तमान तथा भविष्य में विश्वासI
- बहुतत्व वाद मे विश्वासI
- उपयोगिता के सिद्धांत पर बलI
- सत्य का निर्माण उसके फल से होता हैI
- सामाजिक प्रथाओं एवं परंपराओं का विरोधI
- वास्तविकता निर्माण की अवस्था में होती हैI
- समस्याएं सत्य के निर्माण में एक प्रेरणा के रूप में
- लचीलेपन में विश्वास
- क्रियाकामहत्व
- गतिशील निर्देशन।
- नवीन मूल्यों का निर्माण।
- सामाजिक कुशलता का विकास।
- जीवन के रूप में और सबके विकास के लिए।
- पूर्व निश्चित उद्देश्यों का विरोध।
- उपयोगिता का सिद्धांत
- रुचि का सिद्धांत
- क्रिया का अधिनियम
- अनुभव का सिद्धांत
- एकीकरण का सिद्धांत
- सीखने की उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया का सिद्धांत
- अनुभव द्वारा सीखने का सिद्धांत
- सीखने की प्रक्रिया में एकीकरण का सिद्धांत
- योजना पद्धति: किलपैट्रिक
- समस्या समाधान विधि
- प्रायोगिक विधि
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