किशोरावस्था/ टीन एज ( Adolscent Age)
बाल्यावस्था मानव जीवन काल की जन्म से लेकर युवावस्था तक की अवधि को दर्शाती है। इसमें कई विकासात्मक अवस्थाएँ होती हैं और 'किशोरावस्था' उनमें से एक है।
किशोरावस्था वह समय है जिसमें किशोर अपने को वयस्क समझता है वयस्क उसे बालक समझते हैं इस अवस्था में किशोर अनेक बुराइयों में पड़ जाते हैं यह एक ऐसा समय है जिसमें बालक तथा बालिका में बहुत ज्यादा परिवर्तन होने लगता है जिसके कारण ही इन्हें तनाव ,तूफान तथा संघर्ष का काल कहा जाता है तो चलिए पढ़ते हैं कि किशोरावस्था को जीवन का सबसे कठिन काल क्यों कहा जाता है?
'किशोरावस्था’ लैटिन शब्द अडोलेसेरे’ से आया है जिसका अर्थ परिपक्व होने के लिए बढ़ना’ है। यह एक चरण है जो '12 से 19 वर्ष 'की आयु के बीच है।
किशोरावस्था , बचपन ( Childhood - 6 to 12 years ) वयस्कता ( Adulthood - Above 19 years ) के बीच वृद्धि और विकास का संक्रमणकालीन चरण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) किशोर को 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच के किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है। यह आयु सीमा WHO की युवा लोगों की परिभाषा के अंतर्गत आती है।
किशोरावस्था में वैज्ञानिक अनुसंधान के जनक स्टेनली हॉल ने 1904 में किशोरावस्था के संदर्भ में 'तूफान और तनाव' शब्द पेश किया। उसके अनुसार:
किशोरावस्था तनाव, तूफान और संघर्ष की अवधि है।
किशोरावस्था एक अशांत समय है जिसमें संघर्ष और मनोभावों की उथल-पुथल देखने को मिलती है।
बाल्यावस्था से किशोरावस्था में परिवर्तन के काफी तनाव होता है।
किशोरावस्था में बालक स्पष्ट रूप से सोचने में विफल रहता है और यह उनके जीवन में बहुत निराशा और तनाव पैदा करती है।
इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि स्टैनली हॉल ने कहा है कि "किशोरावस्था तनाव, तूफान और संघर्ष की अवधि है"।
ई.ए.किलपैट्रिक का कथन है -
"इस बात पर कोई मतभेद नहीं हो सकता है कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है इस कथन की पुष्टि में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं"-
१. अपराधी प्रवृत्ति :-
इस अवस्था में अपराधी प्रवृत्ति अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाती हैं और नशीली वस्तुओं का प्रयोग आरंभ हो जाता है। सबसे तेजी से लड़के इस अपराधी का शिकार होते है वे गलत सहपाठियों के साथ और दूसरों को चिढ़ाने और सताने में संतुष्ट होने वाले व्यक्ति होते हैं इनके अंदर इतनी शक्तियां आ जाती है कि वे किसी का लिहाज भी नहीं करते और दूसरों को सताने तथा कष्ट पहुंचाने लगते हैं यह एक ऐसा समय होता है जब वे नशीली वस्तुओं का सेवन करना आरंभ कर देते हैं जिसके कारण वे पूरी तरह से दुनिया को अपना समझने लगते हैं और अपने मुताबिक चलने लगते हैं यहां तक की अपने माता पिता से भी लड़ पड़ते हैं उन्हें कोई भी बातें अच्छी नहीं लगती वे खुद में जीना चाहते हैं और खुद में मरना चाहते हैं।
२. समायोजन ना करने से मृत्यु दर की वृद्धि :-
इस अवस्था में समायोजन न कर सकने के कारण मृत्यु दर और मानसिक रोगों की संख्या अन्य अवस्थाओं के तुलना में बहुत अधिक होती हैं बालक एवं बालिकाओं समाज के नियमों को नहीं मानते उन्हें बनाए गए नियम उन्हें गलत लगते हैं उन्हें पूरी तरह से आजादी चाहिए होता है वह समाज के साथ समायोजन नहीं कर पाते जिसके कारण से उनके अंदर मानसिक रोग घर कर जाता है और वह आत्महत्या भी कर बैठते हैं।
३. आवेग और संवेग में तेजी से परिवर्तन:-
इस अवस्था में किशोर के आवेगों और संवेगों में इतनी परिवर्तनशीलता होती है कि वह प्राय: विरोधी व्यवहार करता है जिससे उसे समझाना कठिन हो जाता है अभिभावक द्वारा या बुजुर्गों द्वारा बताए जाने वाले बातें उन्हें अटपटा लगती हैं उन्हें किसी भी काम करने से रोका या टोका जाता है तो उन्हें गुस्सा आने लगता है और वह अपने परिवार वालों से ही लड़ पड़ते हैं।
४. खुद पर अत्यधिक भरोसा :-
इस अवस्था में किशोर अपने मूल्यों आदर्शों और वेदों में संघर्ष का अनुभव करता है जिसके फलस्वरूप वह अपने को कभी-कभी दुविधा में डाल देता है। उनके अंदर खुद पर इतना विश्वास आ जाता है कि वह बिना किसी सोचे समझे कदम उठा लेते हैं जिससे कुछ हद तक उन्हें फायदा में मिलता है और कभी-कभी भारी दुविधा में भी पड़ जाते हैं।
५. इस अवस्था में किशोर बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था दोनों अवस्थाओं में रहता है अतः उसे न तो बालक समझा जाता है और न प्रौढ़।
टीनएज में आकर्षण मुख्य रूप से एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन जैसे सेक्स हार्मोन के बढ़ने से होता है, जो विपरीत लिंग के प्रति भावनाओं और शारीरिक विकास को बढ़ाते हैं. इसके अलावा, डोपामाइन जैसे "अच्छा महसूस कराने वाले" हार्मोन भी उत्साह और खुशी पैदा करते हैं, जबकि ऑक्सीटोसिन लगाव को बढ़ावा देता है. ये हार्मोनल परिवर्तन किशोरावस्था के भावनात्मक उतार-चढ़ाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
मुख्य हार्मोन जो आकर्षण में भूमिका निभाते हैं:
एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन: ये सेक्स हार्मोन किशोरावस्था के दौरान तेजी से बढ़ते हैं. ये हार्मोन यौन इच्छाओं और रोमांटिक भावनाओं के विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं.
डोपामाइन: यह "अच्छा महसूस कराने वाला" हार्मोन है जो किसी के प्रति आकर्षण होने पर खुशी और उत्साह की भावना पैदा करता है.
ऑक्सीटोसिन: इसे "बॉन्डिंग हार्मोन" भी कहा जाता है और यह किसी के प्रति लगाव और भावनात्मक संबंध बनाने में मदद करता है.
हार्मोनल परिवर्तन और किशोरावस्था का अनुभव:
हार्मोनल बदलावों का प्रभाव: ये हार्मोनल बदलाव शरीर और भावनाओं को प्रभावित करते हैं, जिससे किशोरों में तीव्र भावनाएं और जुनून पैदा होते हैं.
मस्तिष्क का अविकसित प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स: किशोरावस्था में मस्तिष्क का वह हिस्सा, जो तर्क, निर्णय लेने और आवेग नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होता है, अभी भी विकसित हो रहा होता है. हार्मोनल उतार-चढ़ाव और अविकसित मस्तिष्क के इस संयोजन से किशोर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने और अपने कार्यों के परिणामों पर विचार करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं.
इसलिए, टीनएज में आकर्षण का अनुभव हार्मोनल और मस्तिष्क के विकास के जटिल मिश्रण का परिणाम है.
टीन-एज (Teenage) 13 से 19 वर्ष की आयु तक की अवधि को कहते हैं, क्योंकि अंग्रेजी में इन संख्याओं (Thirteen, Fourteen, ..., Nineteen) के अंत में "-teen" शब्द आता है. इस अवधि को किशोरावस्था भी कहा जाता है, जो बचपन और वयस्कता के बीच एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल होता है.
टीन-एज के मुख्य बिंदु:
आयु सीमा: यह आमतौर पर 12/13 वर्ष से शुरू होकर 18/19 वर्ष की आयु तक चलती है.
नामकरण का कारण: अंग्रेजी भाषा में 13 से 19 तक के अंकों के उच्चारण में "-teen" प्रत्यय आता है, जो इस आयु वर्ग को पहचान देता है.
शारीरिक और भावनात्मक बदलाव: किशोरावस्था एक ऐसा दौर है जिसमें व्यक्ति में कई महत्वपूर्ण शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक बदलाव होते हैं, क्योंकि वह बचपन से वयस्कता की ओर बढ़ता है.
संक्रमण काल: यह बचपन और वयस्कता के बीच का वह समय है जब व्यक्ति खुद को पहचानता है और जीवन के बारे में विभिन्न चीजें सीखता है.

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